“कैक्टस”.. कविता

कैक्टस !!

तनाव है चारो तरफ़ 

बाहर न यूँ जाया करो

पहले दिखाओ आँखें 
फिर मुस्कुराया करो

मतलबी ये दुनिया
गूँगा न समझ ले कहीं
कभी कभी इसीलिए 
ज़ोर से चिल्लाया करो

तोड़कर हर फूल को
लोग फेंक देते हैं
घरों  की दीवार पर
कैक्टस ही लगाया करो।

अश्वनी राघव (रामेन्दु)

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