लला कौन के घर जानो है!!!


लला कौन के घर जानो है”(कविता)


इस बार

नहीं मिला

वो बूढ़ा आदमी

लपेटे रखता था जो

छोटी सी धोती

काले, छरहरे

अपने जिस्म पर।

करता था जो स्वागत

अपनी चमकती हुई

छोटी सी आँखों से

छोड़ आता था

हमें हमारे घर तक

हँसते- बतियाते

कुछ क़िस्से सुनाते

प्रेम बरसाते।

ढूँढती रही नज़रें

अबकी बार

पूरे नानी गाँव में

 कभी मोबाइल में मस्त

लड़को के पीछे

कभी हाथी,फूल,पंजे के

पोस्टरों के बीच

उस बूढे को

जो ताँगे से उतरते ही

पूँछ लेता था

लला कौन के घर जानो है?
अश्वनी राघव “रामेन्दु”


15/05/2017

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