कविता- “आज फ़िर मौन हूँ मैं”
आज फ़िर मौन हूँ मैं
चला जा रहा हूँ
शून्य में ताकते
सड़क के उस पार
हृदय में समेटें
निराशा, क्रोध और
ढ़ेर सारा अपराधबोध,
छला है फ़िर मैंने
अपनों को
खेला है फ़िर मैंने
उनकी भावनाओँ से
असफ़ल होकर
कितना निष्ठुर हूँ मैं,
अचानक
बेमायने हो गए हैं
फेसबुक, व्हाट्सऐप
लाइक्स और कमेंट्स
बस चले जा रहा हूँ
सड़क के उस पार
क्योंकि यही मेरी नियति है।
अश्वनी राघव “रामेन्दु”
15/06/2017
आज फ़िर मौन हूँ मैं चला जा रहा हूँ
शून्य में ताकते सड़क के उस पार
हृदय में समेटेंनिराशा, क्रोध और
ढ़ेर सारा अपराधबोध,
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इस मौन में भी ढेर सारे शब्द और अर्थ छुपे है. बहुत खूब.
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शुक्रिया रेखा जी!! कई बार मन की स्थिति ही शब्दों से बाहर आती है।
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बिलकुल !!!
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👌👌
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शुक्रिया जी
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Welcome sir
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आपने बहुत ही अच्छा लिखा है अश्विन जी। पढ़ने के बाद मन बरबस सोचने लगता है।
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शुक्रिया रजनी जी। यही तो संवेदनशीलता की पहचान है।
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बहुत खूबसूरती से लिखा आपने—छला है फ़िर मैंने
अपनों को
खेला है फ़िर मैंने
उनकी भावनाओँ से
असफ़ल होकर
कितना निष्ठुर हूँ मैं,—बहुतखूब।
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धन्यवाद मधुसूदन जी। एक संवेदनशील हृदय ही इन भावनओं को समझ सकता है।
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बिलकुल—-एक एक शब्द में दर्द वाह—-
बस चले जा रहा हूँ
सड़क के उस पार
क्योंकि यही मेरी नियति है।
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शुक्रिया मुधुसूदन जी
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My father was working in Indian Railways, we lived for eight years in New Delhi. It is nice to read Hindi poems 🙂
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Thanks Mukhamani ji
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आज फिर मौन हूँ मैं..।
क्यूँकि मौन रहते हुए हम स्वयं से बातें करते हैं, और विचारों के मंथन के उपरांत कुछ ऐसी पंक्तियाँ बन के आती हैं।। अच्छी कविता👌👌
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शुक्रिया स्मृति स्नेहा जी!!
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बहुत धन्यवाद सर🙏
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Nice…
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Thank U😊
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