आज फ़िर मौन हूँ मैं !!


कविता-  “आज फ़िर मौन हूँ मैं”


आज फ़िर मौन हूँ मैं

चला जा रहा हूँ

शून्य में ताकते

सड़क के उस पार

हृदय में समेटें

निराशा, क्रोध और

ढ़ेर सारा अपराधबोध,


छला है फ़िर मैंने

अपनों को

खेला है फ़िर मैंने

उनकी भावनाओँ से

असफ़ल होकर

कितना निष्ठुर हूँ मैं,


अचानक

बेमायने हो गए हैं

फेसबुक, व्हाट्सऐप

लाइक्स और कमेंट्स

बस चले जा रहा हूँ

सड़क के उस पार

क्योंकि यही मेरी नियति है।

अश्वनी राघव “रामेन्दु”



15/06/2017

20 thoughts on “आज फ़िर मौन हूँ मैं !!

  1. आज फ़िर मौन हूँ मैं चला जा रहा हूँ
    शून्य में ताकते सड़क के उस पार
    हृदय में समेटेंनिराशा, क्रोध और
    ढ़ेर सारा अपराधबोध,

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  2. बहुत खूबसूरती से लिखा आपने—छला है फ़िर मैंने

    अपनों को

    खेला है फ़िर मैंने

    उनकी भावनाओँ से

    असफ़ल होकर

    कितना निष्ठुर हूँ मैं,—बहुतखूब।

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      1. बिलकुल—-एक एक शब्द में दर्द वाह—-
        बस चले जा रहा हूँ

        सड़क के उस पार

        क्योंकि यही मेरी नियति है।

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  3. आज फिर मौन हूँ मैं..।
    क्यूँकि मौन रहते हुए हम स्वयं से बातें करते हैं, और विचारों के मंथन के उपरांत कुछ ऐसी पंक्तियाँ बन के आती हैं।। अच्छी कविता👌👌

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