संतोष !! (कविता)
पैदल ही जाएगा
आज वो घर
दिन भर की
थकान के बावजूद,
लिए हैं
उसने छः केले
किराए के
पैसो से ,
नन्ही की परीक्षा है
काकू की दौड़ भी
उनकी मम्मी भी
रखेगी कल
सोमवार का व्रत,
चला जा रहा है
तेज़ कदमो से
बचाते हुए
केलों की थैली को
आते- जाते ट्रैफिक से,
चेहरे पर लेकर
विजयी मुस्कान
और ढ़ेर सारा
संतोष !!
अश्वनी राघव
21/07/2017
bahut achchhi.
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बहुत शुक्रिया इंदिरा जी पढ़ने और सराहने के लिए !!😊
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:), khuchh achchha padne se khushi aur labh dono mujhe hi milte hai.
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हमें भी तो प्रोत्साहन और सुझाव मिलते हैं☺
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🙂
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Bahut hi sundar,beautiful.
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शुक्रिया ज्योतिर्मय जी
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Bahut hi badhiya…👌👌👌
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Ha kaku aise hi hote h
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हमारे घर ने भी है एक काकू
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आपने कुछ हीं शब्दों- पंक्तिंयोँ में जीवन के संघर्ष का सच दिखा दिया अश्विन जी।
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प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया रेखा जी ..
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मैं ने तो सच्चाई लिखी है। आपकी कविता प्रशंसा के योग्य है। 🙂
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Waah!
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शुक्रिया रूपाली जी
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