संतोष !!

संतोष !! (कविता)

पैदल ही जाएगा

आज वो घर

दिन भर की

थकान के बावजूद,

लिए हैं

उसने छः केले

किराए के

पैसो से ,

नन्ही की परीक्षा है

काकू की दौड़ भी

उनकी मम्मी भी

रखेगी कल

सोमवार का व्रत,

चला जा रहा है

तेज़ कदमो से

बचाते हुए

केलों की थैली को

आते- जाते ट्रैफिक से,

चेहरे पर लेकर

विजयी मुस्कान

और ढ़ेर सारा

संतोष !!

अश्वनी राघव

21/07/2017

15 thoughts on “संतोष !!

  1. आपने कुछ हीं शब्दों- पंक्तिंयोँ में जीवन के संघर्ष का सच दिखा दिया अश्विन जी।

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