सपने में

मैंने सपने में
घर बनाया
हक़ीक़त में
बेघर रहा,
मैंने सपने में
पैसे कमाये
हकीकत में
मफ़लश रहा
मैंने सपने में
इज्ज़त कमाई
हकीकत में
बेइज्जत हुआ
मैंने सपने में
आवाज़ उठाई
हकीकत में
सहता रहा
मैंने सपनें में
प्रेम किया
हकीकत में
रूठा रहा
मैं सपने में
जीता रहा
हकीकत में
मैं मर गया।

अश्वनी राघव “रामेंदु”

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