उनका धर्म
आपके धर्म से
सिर्फ़ इतना अलग है
जितना
सियासत से भगवान
जितना
हुल्लड़ से ध्यान
जितना
हिंसा से प्यार
जितनी
फूल से तलवार
जितने
अर्चना से नारे
जितने
रक्षक से हत्यारे
जितनी
दान से दिहाड़ी
जितनी
चरणामृत से ताड़ी
और हाँ
एक अंतर और है
उनको नही पता
धर्म है क्या??
अश्वनी राघव “रामेन्दु”
17/04/2022
So mindful poem sir ….. thank you for sharing with us…
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शुक्रिया Shayna जी
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Truth… explained.very nice
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Thank you Kamini ji
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सही है।
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जी
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👍👍👍👌👍👍👍
… उनको नहीं पता
धर्य है क्या ?
और पता तो तुम्हें भी कुछ नहीं है..
धर्म के नाम पर
हत्याओं के नारे
इरादे
और कोशिशें तक
वो तो करते ही थे
पर
करते तो तुम भी हो
और फिर भी कहते हो
कि तुम धर्म पर हो?
हे जगत प्रिय धर्मात्मा
तुम कहते फिरते हो कि
तुम धर्म के पालक हो
तुम ही उस परमसिद्ध के
मान के रक्षक हो …
मगर तुम क्या हो ?
तुम तो घातक हो… !
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अलग अलग पहलू 👍👍
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धर्म तो ‘धारण करने की क्रिया’ है…
धरती के समान !
समस्त शुभाशुभ
सबकुछ धारण करते जाना …
समाते जाना…
तटस्थ और मौन .. !
पर हम और तुम
आरोपण … प्रक्षेपण…
और दोहन को
धर्म मान भी बैठे
और मनवाने की
जिद भी ठाने हैं…
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हमारा धर्म उनके धर्म से बस इतना अलग है कि वे हमारे धर्म को रौंदने के लिए लड़ रहे हैं और हम खुद को बचाने के लिए| और हाँ उनको पता है कि जो वे मानते हैं सिर्फ वही धर्म है और उसे कायम रखने में किसी की हत्या भी धर्म ही है |
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