हत्या
अगर सजातीय हो
या यूँ कहिए
अपनो के बीच हो
तो ख़बर नही बनती
न अखबारों में
न घरों में
न गली-मोहल्लों में,
ख़बर बनने
खलबली मचने
और लोगों के
तैश में आने की
ज़रूरी शर्त है
कम से कम
एक का
बाहरी होना,
चलिए
ऐसे समझिए,
अगर आदमी
आदमी को
मार दे
ख़बर उबाऊ है
पर आदमी अगर
जानवर को मार दे
तो ख़बर है
खलबली है
लोग तैश में भी हैं!!
अश्वनी राघव “रामेन्दु”
जानवर संरक्षित है।
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और आदमी??
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आदमी जानवर बन रहा है।
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सही कह रहे हैं आप, हम सब अब इंसान नही रहे.
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I think it’s always not true if one kills another person we can see it comes out in the Newspaper but yes animals killing is more attractive 😊well shared.
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Agree with you Priti ji. Thanks for your appericiation🙏
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You are welcome 😊stay blessed 🥰
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बिलकुल सही कहा आपने कि सजातीय हत्या अखबार में जगह नहीं बना पाती परन्तु सत्य ये भी है कि मौन रहने में और सियासत को उससे कोई फायदा ना दिखाई दे फिर बाहरी का नरसंहार भी अखबार में जगह और न्याय पाने को तरस जाती है|
जहाँ तक जानवरों का सवाल है अब जानवरों को जानवर से कम इंसानों से ज्यादा डर है|
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